Tuesday, October 29, 2019
दीपावली पर लगा गधों का मेला फिल्मी सितारों के नाम पर लगती है लाखों की बोली
Monday, October 28, 2019
किसानों को बड़ी राहत | रीवा के बाद अब सतना में भी ऐरा प्रथा पर रोक
किसानों को कलेक्टर ने बड़ी राहत दे दी है। फसलों के लिए अभिशाप बन चुके ऐरा प्रथा पर कलेक्टर ने रोक लगा दी है।प्रतिबंधात्मक आदेश जारी कर दिया है। अब सड़कों पर आवारा मवेशी घूमते मिले तो पशु मालिकों पर पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज होगा।
जिला कलेक्टर डॉ सतेंद्र सिंह ने
आवारा पशुओं से फसलों की क्षति व सार्वजनिक स्थलों में पशुओं के यत्र तत्र घूमने के कारण होने वाले नुकसान की रोकथाम के उद्देश्य से प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किया है। जिला दण्डाधिकारी ने आदेश में कहा है मवेशियों को बिना चरवाहे के छोड़ने की ऐरा प्रथा के कारण पशुओं के यहां-वहां घूमने से किसानों की फसलों को नष्ट करते हैं। ऐसे में आक्रोशित किसानो के द्वारा पशुओं के साथ क्रूरता की जाती है। सड़क में पशु दुर्घटनाग्रस्त होकर मृत अथवा घायल हो जाते हैं । इससे लोगों की आस्था प्रभावित होगी है। कानून व्यवस्था बिगड़ती है। इन स्थितियों को ध्यान में रखकर कलेक्टर ने प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किया कर दिया है। इससे लाखो आवारा पशु सड़कों से हटेंगे। किसानों की फसल बर्बाद होने से बचेगी।
बाहरी हार्वेस्टर की इंट्री पर रोक।
इसके साथ ही पराली जलाने को पूर्णत: प्रतिबंधित कर दिया है। इसके अलावा हार्वेस्टर की अनुमति उसी शर्त पर दी जायेगी जब उसके साथ भूसा कटाई की मशीन जैसे रीपर का प्रयोग किया जाएगा। भूसा कटाई मशीन के बिना हार्वेस्टर का प्रयोग पूर्णत: प्रतिबंधित रहेगा।
घर-घर जाकर विधिवत होगा सर्वे
कलेक्टर ने पशुपालन विभाग के अधिकारी- कर्मचारी को पशु पालक के घर-घर जाकर पशुओं की टैगिंग के निर्देश दिए हैं। इससे यह पता चलेगा कि संबंधित पशु का मालिक कौन है। पालकों के पशुओं को ऐरा छोड़ने तथा दुर्घटना होने को उन पर पशु क्रूरता निवारण अधिनियम
के तहत प्रकरण दर्ज कराया जायेगा।
समाप्त होने की कगार पर गावो का अनुष्ठानिक ;बरेदी नृत्य;
पहले दीपावली से एकादसी तक यादव समुदाय पूरे 10 से 12 दिनों तक उत्सव मनाता था। गाव गाव उनकी टोली डोर पहन, पैरों में घुघरू बाध और हाथ में मोर पंख से बंधी लाठी लेकर बरेदी नृत्य करती । वे बीच बीच में लाठी युद्ध की अपनी पटे बाजी भी दिखाते जाते। यह परम्परा छत्तीशगढ़ तक थी । उसे वहां राउत नाचा नाम से जाना जाता है।
इस नृत्य में वे श्री कृष्ण के प्रेम प्रसंगों य दधी दान से सम्बंधित दिवाली का गीत भी गाते थे। उनका यह सारा अनुष्ठान देवरी जगाना नाम से जाना जाता था। पर कुछ वर्षो से यह पूर्णतः समाप्त सा था।पर अब कुछ वर्षों से पुनः गांवों में एक टोली आने लगी है वह गांवों में पहुचकर अपना देवरी जगाने का अनुष्ठानिक नृत्य दिखाते फिरते हैं।