शिल्पग्राम में आदिम संस्कृति एवं जीवन शैली को दर्शाने वाला एक जीवन्त संग्रहालय है।
✍ अनुपम दाहिया
पिछले सप्ताह हम 5 दिन के लिए उदयपुर राजस्थान में गए थे यहां शहर के समीप ही शिल्पग्राम में ऑर्गेनिक फॉर्मर एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा 3 दिवसीय जैविक महोत्सव का आयोजन किया गया था जिसमें में 20 से अधिक राज्यो के कृषि वैज्ञानिक, किसान, देशी बीज सरक्षक , शोधकर्ता सभी एक ही मंच पर जैविक खेती के विकास को लेकर एकत्रित हुए थे ।
उदयपुर शहर से लगभग 5 किलोमीटर दूर ग्रामीण शिल्प एवं लोक कला परिसर शिल्पग्राम स्थित है। लगभग 2 किलोमीटर के दायरे में भूमि क्षेत्र में फैला तथा अरावली पर्वतमालाओं के मध्य में बना शिल्पग्राम पशिचम क्षेत्र के ग्रामीण तथा आदिम संस्कृति एवं जीवन शैली को दर्शाने वाला एक जीवन्त संग्रहालय है। इस परिसर में पारंपरिक वास्तु कला को दर्शाने वाली झोंपड़ियां निर्मित की गई जिनमे भारत के पश्चिमी क्षेत्र के पांच राज्यों के भौगोलिक वैविध्य एवं निवासियों के रहन-सहन को दर्शाया गया है।
इस परिसर में राजस्थान की सात झोपड़ियां है। जिनका प्रतिरूप राजस्थान के रेगिस्तान में स्थित गांव रामा तथा सम से लिया गया है।व
मेवाड़ के पर्वतीय अंचल में रहने वाले कुंभकार की झोंपड़ी उदयपुर के 70 किमी दूर गांव ढोल से ली गई है।
दो अन्य झोंपड़ियां दक्षिण राजस्थान की भील सहरिया आदिवासियों की है। साथ ही गुजरात राज्य की भी प्रतिकात्मक 12 झोंपड़ियां हैं इसमें छ: कच्छ के बन्नी तथा भुजोड़ी गांव से ली गई है।
इसी के समीप पशिचम गुजरात के छोटा गुजरात के आदिम व कृषक समुदाय जनजाति राठवा और डांग की झोंपड़ियां अपने पारंपरिक वास्तु शिल्प एवं भित्ति अलंकरणों से पहचानी जा सकती है। इसके अतिरिक्त लकड़ी की बेहतरीन नक्काशी से तराशी पेठापुर हवेली गुजरात के गांधीनगर जिले की काष्ठ कला का बेजोड़ नमूना है।
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